सोमवार, 1 अगस्त 2011

कागज़ के पैकेट में भी आ रहा है गुटखा ..

आज अभी अभी मैंने आज की पंजाब केसरी अखबार में देखा कि यमुनानगर (हरियाणा) में एक नशीला पदार्थ खुलेआम बिक रहा है... शीर्षक भी यही था ...खुले में बिक रहा है ज़हर... जब उस समाचार को आगे पढ़ा तो पता चला कि कोई मुनक्का वटी नाम से पुड़िया या पाउच (ध्यान नहीं है क्या लिखा था) .. पान-बीड़ी-सिगरेट की दुकानों में बिक रहा है और स्कूल-कॉलेजों के आस पास जो दुकाने हैं वहां तो इन की बिक्री बहुत ज़्यादा हो रही है।

किसी को कोई पता नहीं कि इस में आखिर है क्या, लेकिन रिपोर्ट में इतना लिखा था कि इसे खाने के बाद एक अजीब सा नशा हो जाता है। पढ़ कर बेहद चिंता हुई .. यही लगा कि बस ऐसे नशों की ही खुलेआम बिकने की कमी थी, बाकी सब कुछ तो पहले ही से मिल रहा है।

यह पढ़ने के बाद मेरे से रहा नहीं गया...मैंने सोचा कि अपने पास ही के एक पनवाड़ी से पता करूं कि आखिर यह है क्या। लेकिन मेरे पूछने पर उस ने बताया कि ऐसा कुछ हमारे यहां तो बिकता नहीं। अभी मैं वहां से हटने ही लगा था कि मेरी नज़र गुटखे के बड़े बडे पैकेटों पर पड़ गई। बड़ा अजीब सा लगा।

मेरे साथ समस्या यह है कि अपने लेख लिख कर स्वयं ही भूल जाता हूं कि लिखा क्या था... कुछ दिन पहले मैंने एक लेख लिखा था कि अब गुटखे आदि प्लास्टिक के पाउच की बजाए कागज़ की पैकिंग में बिका करेंगे.. अच्छा लगा था यह पढ़ कर कि कम से कम लाखों-करोड़ों प्लास्टिक पाउचों की वजह से जो पर्यावरण को नुकसान हो रहा है वह तो कम होगा। और दूसरा यह कि अब शायद गुटखा-यूज़र इसे अपनी पैंट-शर्ट की जेब में रखने से झिझकेंगे .....जब आए दिन दाग़ वाग बीवी घिसने बैठेगी तो कलेश तो होगा ही!!

तो मैंने पनवाड़ी से पूछा कि क्या अब ये गुटखे-वुटखे कागज़ की पैकिंग में आने लगे हैं ...तो उस ने कहा ...हां, हां, अब तो लगभग सभी ब्रांड कागज़ की पैकिंग में ही आने लगे हैं, एक गुटखे का नाम उसने लिया जिस के प्रोडक्ट अभी भी प्लास्टिक पाउच में ही बिकते हैं।

हां, तो मैंने उसे एक पाउच देने के लिये कहा ...उस ने दिया तो आज पहली बार एक गुटखे को कागज़ के पाउच में देख कर बहुत खुशी हुई ... इसलिए इस ऐतिहासिक क्षण की तस्वीर भी यहां टिका रहा हूं।

लेकिन एक बात अजीब सी लगी ... जब उस ने मुझे गुटखे का यह बड़ा सा पैक दिया तो मैंने उसे कहा कि एक रूपये वाला दो ... कहने लगा कि अब एक रूपये वाला नहीं आता ...दो और पांच रूपये वाले पैकेट ही आते हैं। गुटखे का पांच रूपये वाला पैकेट जो आप यहां देख रहे हैं काफ़ी बड़ा है .. लगभग 10 सैंटीमीटर X 8सैंटीमीटर के आकार के पाउच में यह गुटखा रूपी शैतान बंद है.... बस समझने के लिये इतना ही काफी है कि जो छोटे पाउच मिलते हैं, उन चार पाउचों के बराबर की पैकिंग है इन बड़े पैकेटों की।

सोच रहा हूं कि यह बड़ी पैकिंग का कैसे ध्यान आ गया इन निर्माताओं को --- फिर लगा कि कागज की पैकिंग है, और ऊपर लिखा बी है कि Multiple use pack… अर्थात् एक ही पाउच के कंटैंट्स को बार बार खाया जा सकता है। इसी वजह से ....ताकि उन के चहेते ग्राहक को पाउच को फोल्ड कर के जेब में सहेज कर रखने में कोई असुविधा न हो, कोई आलस्य न आए।...

लेकिन फिर ध्यान आ रहा है कि जिस तरह से मैं बहुत से मोटरसाईकिल सवार युवकों को दो दो पाउच पनवाड़ी की दुकान के सामने मुंह में उंडेलते देखता हूं उन्हें तो और भी सुविधा हो जाएगी .....जैसे मोटरसाईकिल की टंकी फुल कर के चलने का अपनी ही मज़ा है, ऐसे में गुटखे को मुंह में अच्छी तरह से ठूंस कर ड्राइविंग का शायद क्रेज़ ही अलग हो। लेकिन जो भी हो, यह बड़े पाउच पहले ही से गंभीर समस्या को और भी क्रिटिकल बना सकते हैं।

यह भी समझ में नहीं आ रहा कि यह बड़े पाउच में यह गुटखा आदि चीज़े बेचना शायद उस नियम को ताक पर रखने की तैयारी हो जिस में कुछ ही महीनों में ऐसे प्रोडक्ट्स पर डरावनी तस्वीरें देखने की सारा देश बाट जोह रहा है................(कहीं हम बाट ही जोहते न रह जाएं!!).

लेकिन वो मुनक्का वटी बात तो पीछे छूट गई ... पीछे नहीं छूटी ... अब अगर पनवाड़ी कह रहा है कि हम ये नहीं बेचते ... तो मैं उस की दुकान की तालाशी लेने से तो रहा ... लेकिन लगाता हूं कि किसी की ड्यूटी उस मुनक्का वटी की एक पुड़िया मेरे सामने पेश करने की। हां, तो उस लेख में यह भी लिखा था कि उस पर यह तो लिखा है कि इस का इस्तेमाल करने से पहले आप किसी वैध की सलाह ले लें ....लेकिन यह लिखा ऐसी जगह है और इतने बारीक अक्षरों में लिखा है कि इसे कोई पढ़ ही न पाता होगा।

वैसे, इस पनवाड़ी ने मेरे से इतनी बातें कर कैसे लीं.... इस का एक राज़ है!!.....मेरा छोटा बेटा इस का पक्का ग्राहक है ...वह अपना सारा जंक फूड –क्रीम बिस्कुट, चाकलेट, चिप्स इसी पनवाड़ी से ही खरीदताLink है......थैंक गॉड, उस ने यह सब अब बहुत ही कम कर दिया है।

अच्छा सोमवार की इस आलस्य भरी सुबह में कलम को यहीं विराम देता हूं।
संबंधित लेखों का पिटारी ........ तंबाकू का कोहराम

5 टिप्‍पणियां:

  1. डॉ साहेब,

    क्या कुरकुरे, चिप्स, बिस्कुट, नमकीन - खासकर ५ रुपे वाला पक, प्लास्टिक के कप - मेरे चायवाला रोज ४०० कप का कूड़ा फेंकता है, प्लास्टिक के गिलास, पानी की बोतलें और तो और आजकल १ रुपे में पानी के पाउच भी मिल रहे है - क्या ये सब पर्यावरण को नुक्सान नहीं पहुंचा रहे........ ???

    कोर्ट इन पर सख्त क्यों नहीं..... सरकार इनका विकल्प क्यों नहीं ढूंढ रही.

    कृपया अगली पोस्ट में इस पर भी कुछ परकाश डालियेगा.

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  2. अब क्या कहूं... बहुत पहले होली के मौके पर भोपाल में ये मुनक्का वटी मैं भी खा चूका हूँ. कहते तो यही हैं की इसमें केवल भांग होती है पर मेरा अनुभव कहता है की इसमें कोई न कोई ओपियम डेरिवेटिव जैसा कुछ भी मिलाया जाता है. कोई कहता है कि इएमें मैन्ड्रेक्स भी होता है. सच मुझे पता नहीं.
    इन्हें खाने पर आप धीरे-धीरे आपने आसपास की हलचल आदि से अनजान होते जाते हैं. अजीब सी तन्द्रा छाती है. नींद आ जाती है. कुछ लोग बहुत बडबडाने लगते हैं. कोई खाता है तो खाता ही जाता है. कोई हँसता है तो हँसता ही रहता है.
    असली असर तो दूसरे-तीसरे दिन पता चलता है जब खाने-पीने का मन नहीं करता. सर भारी होता है और आँखें स्याह और डाय्लेट दिखती हैं. मैं आपको एक-दो गोली खाने का असर बता रहा हूँ. मैंने लोगों को दस-दस गोली खाते देखा है. ऊपर से वे दीगर नशे और शराब आदि भी पीते हैं.

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  3. ये तो भला हो गांधी जी का देश आज़ाद होते ही देश मे अफीम पूर्ण प्रतिबंधित कर दी गयी थी
    नहीं तो आज पाकिस्तान जैसा हाल होणा था भारत का भी

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  4. अपना नहीं तो कम से कम पर्यावरण का तो बचाव किया ही जाए.
    घुघूतीबासूती

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