शनिवार, 21 मई 2016

पैदल घूमने की प्रेरणा ऐसे भी मिलती है!

प्रेरणा भी गजब की चीज़ है ...किसी को कहीं से भी मिल जाती है ...अभी ऐसे ही रेडियो सुन कर समय को धक्का दे रहा था कि जर्नलिज़्म के एक विद्यार्थी ने पिछली पोस्ट पर एक टिप्पणी भेज दी पुणे से कि आप के ब्लॉग से प्रेरणा मिली...ठीक है भाई, बहुत अच्छी बात है ...आप ने प्रेरणा शब्द लिख कर मुझे भी इस पर िलखने के लिए एक विषय दे दिया...धन्यवाद...

हां, तो बात प्रेरणा की हो रही थी ...अकसर मैं पैदल टहलते हुए या साईकिल पर लखनऊ शहर का भ्रमण करते हुए कभी कभी ऐसे लोगों को सड़क पर देखता हूं कि मैं उन के स्वास्थ्य लाभ की कामना तो करता ही हूं ..साथ में यही सोचता हूं कि अगर सुबह सात-आठ बजे तक ए सी कमरों में ठिठुर रहे लोग इन लोगों का जज्बा देख लें तो यकीनन, भाग के बाहर आ जाएं वे भी सड़कों पर, बाग बगीचों पर...



यह जो शख्स है इन की पीठ पूरी तरह से झुकी हुई है ...छड़ी लेकर धीरे धीरे चलते हैं..पूरी तैयारी कर के घर से निकलते हैं..स्पोर्ट्स-शूज़ पहन कर ...जब भी मैं इस रोड़ की तरफ़ से निकलता हूं, इन्हें अवश्य देखता हूं टहलते हुए...मुझे बहुत खुशी होती है ... 



इस शख्स को मैंने पिछले हफ्ते देखा था ...इस तरह से वॉकर का सहारा लेकर आप देख सकते हैं आराम से सुबह सुबह टहल रहे हैं...ऐसे और भी लोग अकसर टहलते दिख जाते हैं...कभी कभी महिलाएं भी इसी तरह वॉकर का सहारा लेकर टहलती दिख जाती हैं...


और ये शख्स भी सुबह सुबह टहलते दिखे ....मुझे लगा था कि ये टहल रहे हैं  वह भी पलस्टर चढ़े हुए ....इस तरह से इन का टहलना मुझे मुनासिब नहीं लगा था..लेकिन इन की समस्या दूसरी थी... इनको कोई मारूति वाला कुछ दिन पहले ठोक गया था, टांग टूट गई थी, पलस्टर चढ़ा है लेिकन कह रहे थे कि उस दिन से वह मारूति वाला भी घर से बाहर नहीं निकला... यह किसी रिक्शा का इंतज़ार कर रहे थे...कहीं जाने के लिए...रिक्शा आई और चले गये। 

उस दिन जब मैंने इस वॉकर वाले शख्स को देखा तो मुझे यही ध्यान आया कि इस तरह के लोग टहलते हुए जैसे हृष्ट-पुष्ट लोगों को प्रेरणा दे रहे हों कि तुम तो सक्षम हो अभी टहलने के, घर से बाहर निकल आओ...

मैं भी अपने सभी मरीज़ों को रोज़ाना टहलने की नसीहत ज़रूर पिला देता हूं...जो कहता है नहीं हो पाता, उसे कहता हूं कोई बात नहीं, घर से बाहर निकल कर किसी खाली जगह में बैठ जाइए, रौनक मेला देखिए, सुबह की प्राकृतिक सुंदरता का लुत्फ उठाईए, चढ़ते सूर्य को निहारिए, उसे सलाम कीजिए, पंक्षियों के गीत सुनिए....कोई आता जाता दो बात करेगा...शरीर को सुबह की गुलाबी धूप मिलेगी....आप को अच्छा लगेगा...कुछ दिन कर के देखिए, अगर अच्छा नहीं लगे तो मत करिए...बहुत से लोगों में मेरी बातों से जोश आ जाता है ...Thank God.. 🌺🌳🌴🌲🌼🍀🌻🌻🌹🍀..

मैंने नसीहत का शरतब पिलाने की बात कही ...सच में दोपहर होते होते थक जाते हैं इस छबील पर काम करते करते...लेकिन काम तो काम है!



2 टिप्‍पणियां:

  1. आपके पाठक ने ठीक ही लिखा था कि आपकी पोस्टें दूसरों को प्रेरणा देती हैं , मैं समझ सकता हूँ कि वे जरूर देती होंगी | बहुत ही सुन्दर पोस्टें होती हैं आपकी और उनमें छिपे गीत तो सागर में मोती जैसे लगते हैं ...सुन्दर पोस्ट

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    1. धन्यवाद, झा साहब, अगर कुछ भी अच्छा लगता है तो आप जैसे महान चिट्ठाकारों का इसमें बड़ा योगदान है...२००७ से निरंतर मार्गदर्शन करते रहे हैं...और अापके निर्भीक लेखन से प्रेरणा भी मिलती है ...२००८ वाला नांगलोई का ब्लॉगर मिलन अकसर याद आता रहता है...शुक्रिया...

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