बुधवार, 5 अप्रैल 2017

98 साल की उम्र में योग सिखाना...

अभी कुछ समय पहले मेरी मां ने मुझे अपने फोन में बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट दिखाई जिस में एक ९८ साल की महिला के बारे में बताया गया है कि वह इस उम्र में योग स्वयं तो करती ही हैं, वे एक योग शिक्षक भी हैं...


हमारा क्या है, सारा दिन अखबारों, पत्रिकाओं और मीडिया में घुसे रहते हैं...इस बीमारी से बचना है, उस बीमारी से बचना है तो यह करें, फलां फलां मेवे नहीं खाएंगे तो ढिमका रोग हो जायेगा...

अच्छी बात है रोगों की जानकारी लेना, उन से बचाव के बारे मेें एक साधारण सी जानकारी रखना ....बस उतनी जितनी ज़रूरत हो, ऐसा न हो कि हम खुद ही डाक्टर बन कर अपना और आसपास के लोगों का इलाज शुरू कर दें....आजकल हो कुछ कुछ यही रहा है ..लोग अपने आप ही पैथोलॉजी में चले जाते हैं, सीटी स्कैन या अल्ट्रासाउंड तक करवाने का निर्णय स्वयं ले लेते हैं...और प्राईवेट संस्थाओं में इन की इच्छा की पूर्ति भी तुरंत हो जाती है...

जितना भी यह मीडिया में ज्ञान सेहत से संबंधी पड़ा हुआ है..उम्दा है यकीनन, बस आप को यह अच्छे से पता होना चाहिए कि इस जानकारी का स्रोत क्या है...किसी का कोई vested interest तो नहीं है... धीरे धीरे आप समझने लगते हैं..सरकारी संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही जानकारी विश्वसनीय होती है बेशक ...लेकिन बहुत सी गैर सरकारी संस्थाएं भी बहुत बढ़िया जानकारी उपलब्ध करवाती हैं....बस, आप को ही थोड़ा परखना जरूरी है...

बहुत सी कमर्शियल साइटों की समस्या यह है कि ये सनसनी पैदा करती हैं...लोगों को भ्रमित तक कर सकती हैं...बहुत से इंजेक्शनों तक के बारे में यह सब चलता है कि नईं ऩईं बीमारियों से बचने के लिए जिस तरह से इंजेक्शन को कितना aggressively promote किया जाता है ..

होलिस्टिक बात तो योगी लोग ही करते हैं ... कुछ योगी भी हाई-टैक हो चले हैं..कहने को तो योग शिक्षा है, लेकिन यह भी प्रोफैशनल कालेज की शिक्षा जितनी महंगी हो चली है ..

उस दिन एक पति-पत्नी आए मेरे पास ... पुरूष का वजन पहले से कम लग रहा था...मैंने पूछा तो उन्होंने बताया कि यह सब योग की माया है ..हम एक आश्रम में रहे हैं ..तीन हज़ार रूपया कमरे का किराया था.. पंद्रह दिन रहे हैं..पचास हज़ार खर्च कर आये हैं...अब फिट महसूस करते हैं ....और उन्होंने बताया कि अब वह तीन हज़ार वाला कमरा पांच हज़ार प्रतिदिन के हिसाब से मिला करेगा ......और हां, अगर सुविधाएं इस से बढ़िया चाहिए ...तो दस हज़ार रूपये एक दिन के खर्च करने होंगे...

मेरा माथा ठनका एक बार तो ...मुझे जिज्ञासा हुई कि योग संस्थान में ऐसी कौन सी "अन्य सुविधाओं"की ज़रूरत पड़ती होगी कि इतने महंगे कमरे लेने के लिए लोग तैयार हो जाते हैं...उसने बताया कि हम लोगों को तो थैला उठा कर उस संस्थान में एक जगह से दूसरी जगह जाना पड़ता था लेकिन यह जो १० हज़ार वाली कैटेगरी है, उन का सारा काम ...क्या बताया था उसने ..सोना बॉथ तक का प्रबंध भी उनके कमरे में ही हो जाता है...

मेरी तरह आप भी शायद यही मानते होंगे कि योग विद्या ऐसी कृपा है जो शुल्क की मोहताज नहीं हो सकती .. मैंने ऊपर जिस संस्थान के बारे में लिखा है, मुझे कोई आपत्ति नहीं है...वे जबरदस्ती तो किसी को रोकते नहीं, जिस के पास पैसा है वह कुछ भी खरीद सकता है, सेहत के सिवाय, लोग एग्ज़ीक्यूटिव क्लास में भी सफर करते हैं और बैलगाड़ी पर भी करते हैं ..अपने अपने साधनों की मौज है...

इसलिए जिन संस्थानों में ज़्यादा पैसा लेने की बातें ज़्यादा होने लगती हैं, उन से कमर्शियल संस्थानों की महक आने लगती है....योग शिक्षा को भी मुझे लगता है कि आज कल कुछ अजीब से कमर्शियल ढंग से प्रस्तुत किया जा रहा है ...मुझे हमेशा से ही लगता रहा है कि योग विद्या ऐसी नहीं है कि आप जैसे बाज़ार में जाकर मिठाई खरीद लाए...जितने जेब में पैसे ज़्यादा हैं, उतनी बढ़िया खरीद लाएंगे ..ऐसा असंभव है ..योग विद्या में....यह तो एक गुरू की कृपा से ही एक दान के रूप में ही हासिल की जा सकती है ....फिर चाहे आप गुरु-दक्षिणा के रूप में जो भी समर्पित करना चाहें, वह आप की श्रद्धा है ....योग विद्या तो भई प्राचीन गुरु-शिष्य परंपरा के नियमों पर ही टिकी रहेगी तो ठीक है.......वरना यह भी एक धंधा ही बनता जा रहा है, विज्ञापनों को देखते हुए तो यही लग रहा है ....

चलिए, बस यही बंद करते हैं इस बात को ...यहां पर यह कुछ माला जपने की बात कर रहे हैं, इन्हें सुनते हैं...

जैसे राधा ने माला जपी शाम की .... 

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