रविवार, 16 अप्रैल 2017

क्या कोलेस्ट्रोल का कुछ लफड़ा है ही नहीं ?

हमारी सोसायटी में दो माली आते हैं ..जुडवां भाई हैं दोनों...साठ-पैंसठ साल के ऊपर के होंगे ...पतली-कद-काठी ...सारा दिन किसी न किसी घर के बेल-बूटों की मिट्टी के साथ मिट्टी हुए देखता हूं...आज शाम मैं बुक फेयर से लौट रहा था तो मैंने इन में से एक को देखा ...मैंने स्कूटर रोक लिया ...इन्हें मैं आते जाते माली जी, राम राम ज़रूर कहता हूं...मुस्कुरा कर जवाब देते हैं.. मैं रूका तो ये भी रूक गये...मैंने कहा ...यार, आप मेहनत बहुत करते हो...बताने लगे कि सुबह नौ बजे आते हैं और शाम पांच छःबजे लौटते हैं ...सारा दिन मैं इन दोनों भाईयों को अपने काम में मस्त देखता हूं...और शाम को ये ज़्यादा चुस्त-दुरूस्त दिखते हैं....लेकिन हम पढ़े-लिखे लोगों ने भी अपनी बेवकूफ़ी का परिचय तो देना ही होता है ..क्योंकि मैंने इन से यह पूछा...यार, आप थकते नहीं?....एक दो मिनट बातें हुई, हाथ मिला कर उन से छुट्टी ली .. (रोटी ये लोग साथ लेकर आते हैं, दोपहर में इन्हें कभी कभी खाते हुए देखता हूं..) 

बचपन में हमारे घर के पीछे एक बहुत बड़ा बागीचा था.. जिसमें तरह की सब्जियां, फल-फूल बीजने और उन की देखभाल करने के लिए (कभी सुबह, कभी शाम) जो नेकपुरूष आते थे उन्हें हम बाबा जी कहते थे....सारे घर के लिए ही वे बाबा जी थे...बड़ी सब्जियां उन्होंने खिलाईं,  उन के पास जाकर बैठ जाता मैं बहुत बार....इसी वजह से फूल-पौधों के प्रति प्यार भी पैदा होता चला गया...  एक तरह से घर के सदस्य जैसे थे ...सुबह जब नाश्ता बनता तो सब से पहले दो परांठे, आम का आचार और चाय का गिलास उन के पास लेकर जाने की ड्यूटी मेरी ही थी...हम लोग भी यही सब कुछ खाते थे .. 

कभी परांठे-वरांठे खाने में सोचना नहीं पड़ना था... कुछ लाइफ-स्टाईल ही ऐसा था, अब बाबा जैसे लोग या हमारी सोसायटी के माली जैसे लोग घी के परांठे खा भी लेंगे तो इन का क्या कर लेगा घी...इतनी मेहनत- मशक्कत...और हम लोग भी तब पैदल टहलते थे, उछल-कूद करते थे, साईकिल भी चलाते थे ..जंक बिल्कुल खाते ही नहीं थे, होता भी कहां था इतना सब कुछ उन दिनों.. बिल्कुल नाक की सीध पर चलने वाली सीधी सादी ज़िंदगी थी .. 

अभी अभी मेरी एक सहपाठिन का वाट्सएप पर मैसेज आया ...वाशिंगटन पोस्ट की एक न्यूज़ स्टोरी का लिंक था ...जिसमें लिखा गया था कि अब अमेरिकी संस्थाएं कोलेस्ट्रोल वाली चेतावनी हटाने के बारे में फैसला लेने ही वाली है ..

पंजाबी की एक कहावत है ... कि फलां फलां को तो जैेसे किसे ने उल्लू की रत पिला दी हुई है ....उल्लू की रत पिए हुए बंदे की हरकत यह होती है कि वह हर किसी की हां में हां मिलाते फिरता है .. (वैसे मुझे यह नहीं पता कि यह रत होती क्या है, बस कहावत है!!) 


मुझे यह सोचना बड़ा अजीब लगता है कि अमेरिका जो कहेगा हमें वही मानना होता है ...वह कहता है कि यह खराब है तो हम उसे मान लेते हैं, फिर वह कहता है कि इसे कम करो ये दवाईयां खा के तो हम दनादन दवाईयां गटकने लगते हैं... फिर यही कहता कि इन कोलेस्ट्रोल कम करने वाली दवाईयों के कुछ दुष्परिणाम भी हैं तो हम उन दवाईयों को हिचकिचाते हुए बंद कर देते हैं....फिर अचानक एक दिन ऐसी खबर मिलती है ... कि ये कोलेस्ट्रोल तो खराब है ही नहीं..

तब कभी आंवले की तासीर की तरह अपने बड़े-बुज़ुर्गों की बरसों से मिल रही नसीहत याद आती है कि सब कुछ खाओ करो ...और परिश्रम किया करो .. लेकिन हम उन की बात को लगभग हमेशा यह सोच कर नकार देते हैं कि नहीं, यार, इन्हें क्या पता साईंस का ...इन की मानेंगे तो थुलथुले हो जाएंगे.....(जो कि हम वैसे भी हो चुके हैं!!) 

इस में कोई संदेह नहीं है कि सेहत के जुड़ा कोई भी मुद्दा हो .. मार्कीट शक्तियां इतनी पॉवरफुल हैं कि हम बात की तह तक पहुंच ही नहीं पाते .. 

हां, तो जो वाशिंगटन पोस्ट का लिंक मेरी सहपाठी ने भेजा ..वह दो साल पुराना है ... लिखते लिखते मेरे जैसे लोगों को लाइनों के बीच भी पढ़ने की आदत हो जाती है .. (reading in between lines!) ...वैसे वह लेख बहुत बढ़िया है ... उस में ज्ञानवर्धक जानकारी भी है ..

सहपाठी ने यह ताकीद भी की थी कि इस विषय पर रिसर्च कर के ब्लॉग पर लिखना ...सब से पहले ..warning about cholesterol... को लिख कर ही गूगल सर्च किया तो ये रिजल्ट सामने आए.. 

American thinker का जनवरी २०१७ का यह ब्लॉग भी दिख गया .. आप इसे भी देख सकते हैं..Feds preparing to drop warning on Cholesterol 

यह खबर पढ़ने के बाद मुझे इच्छा हुई कि पिछले साल जो मैंने अपनी लिपिड प्रोफाईल करवाई थी, उसे ही देख लूं...कोलेस्ट्रोल तो 201mg% है और ट्राईग्लेसराईड का स्तर 274 है..जो कि सामान्य से लगभग दोगुना है

यह जो कोलेस्ट्रोल वाली चेतावनी को हटाने वाली बात है ...इस में कोई बात अलग नहीं लगती .....आज भी जो लोग मेहनतकश हैं (उदाहरण ऊपर आपने पढ़ीं) , उन्हें जब मक्खन-मलाई मिल जाती है तो उन्हें सोचना नहीं पड़ता ....और मेरे जैसों को आज भी सचेत रहने की ज़रूरत है ...Moderation is the key ...Balance is the keyword! ...हम लोग मेहनत करते नहीं, शरीर से काम लेते नहीं...खाने की इस तरह की खबरें ढूंढ-ढूंढ कर निकाल लेते हैं....सेलीब्रेट करते हैं कि चलिए, अब तो पाव-भाजी में मक्खन उंडेलने का लाईसेंस मिल गया .. और मैंने भी अपनी सहपाठिन को यही जवाब दिया कि ब्लॉग तो करूंगा ही .....लेकिन आज से ही दाल में एक चम्मच देशी घी उंडेलना शुरू कर रहा हूं....

मैंने यह बात कह तो दी .....लेकिन दिल है कि मानता नहीं.....मुझे नहीं लगता कि मैं अब फिर से बिना रोक टोक के मक्खन-देशी घी खाने लगूंगा ......अब आदत ही नहीं रही ...अंडा़ वैसे बचपन से ही नहीं खाया..जब मैंने अंडा खाना शुरु किया तो मुझे दो चार बार उल्टी हो गई ....बस, तब से अंडा कभी खाया ही नहीं... कोई और कारण नहीं, बस उस की smell नहीं सही जाती..

अच्छा फिर, यही विराम लगाते हैं.. ..एक गीत सुन लेते हैं..कल मैंने लखनऊ में एक कार्यक्रम में सुना था, बहुत दिनों बाद ....अच्छा लगता है बहुत यह गीत .......


अद्यतन किया ..9.45pm (१६.४.१७)....

 इस लेख पर एक टिप्पणी मित्र सतीश सक्सेना जी की आई है ...जिसमें इन्होंने एक लिंक दिया है ...अमेरिकी  नेशनल लाईब्रेरी ऑफ मैडीसन का जिस में इस तरह की एक रिपोर्ट का पोस्टमार्टम किया गया है जिसने कहा है कि दिल की बीमारी और कोलेस्ट्रोल का कोई संबंध नहीं ..

अमेरिकी नेशनल लाईब्रेरी ऑफ मैडीसन की रिपोर्ट का लिंक यह रहा ..जिसे पढ़ना भी ज़रूरी है ताकि हमारे आंखे अच्छे से खुली रहें .. Study says there is no link between cholesterol and heart disease. 

सतीश सक्सेना जी के बारे में बताते चलें कि इन का जीवन भी बडा़ प्रेरणामयी है ..इन्होंने ६१ साल की उम्र में जॉगिंग करना शुरू किया और अब ये दो तीन साल में ही मेराथान रनर हैं...

5 टिप्‍पणियां:

  1. शुक्रिया ..सक्सेना जी... इतनी महत्वपूर्ण रिपोर्ट को शेयर करने के लिए...
    यह बात भी पाठकों को बतानी इतनी अहम् थी कि मैंने तुरंत अपने लेख का अद्यतन कर दिया और साथ में इस लिंक को भी लगा दिया...
    तहेदिल से शुक्रिया ...

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  2. सरजी, कोलेस्ट्रोल के बारे में जीवन के मध्य आयु से लेकर अब तक जो हमें बताया गया है वह हमारे सासों में बस गया है।कोलेस्ट्रोल के कारण ही हम लोग हेल्दी खाना खाने लगे है।परांठा,पूड़ी,बर्गर,समोसे,या अन्य फास्ट फूड खाने से बचते रहते है।अव इस उम्र में बीस साल की पुरानी आदतें बदली नहीं जा सकतीं हैं। HDL,LDL के बारे में जो इतने दिनों की धारणा बनी है उसे बदलना मुश्कल है।वैसे भी यह रिर्पोट मुक्कमल नहीं है इसमें बहुत से Ifs,Buts लगे है। हमने भी कहीं इस रिर्पोट के बारे में पढ़ा था पर हम लोग तो डाक्टर नहीं है लेकिन इस रिर्पोट को स्वीकार करने का मन नहीं करता।सवसे अच्छा है "दाल-रोटी खाओ प्रभू के गुण गाओ"

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  3. सरजी, कोलेस्ट्रोल के बारे में जीवन के मध्य आयु से लेकर अब तक जो हमें बताया गया है वह हमारे सासों में बस गया है।कोलेस्ट्रोल के कारण ही हम लोग हेल्दी खाना खाने लगे है।परांठा,पूड़ी,बर्गर,समोसे,या अन्य फास्ट फूड खाने से बचते रहते है।अव इस उम्र में बीस साल की पुरानी आदतें बदली नहीं जा सकतीं हैं। HDL,LDL के बारे में जो इतने दिनों की धारणा बनी है उसे बदलना मुश्कल है।वैसे भी यह रिर्पोट मुक्कमल नहीं है इसमें बहुत से Ifs,Buts लगे है। हमने भी कहीं इस रिर्पोट के बारे में पढ़ा था पर हम लोग तो डाक्टर नहीं है लेकिन इस रिर्पोट को स्वीकार करने का मन नहीं करता।सवसे अच्छा है "दाल-रोटी खाओ प्रभू के गुण गाओ"

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  4. मेरा भी यही मानना है, आप ने बिलकुल ठीक कहा।

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  5. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व हीमोफ़ीलिया दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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इस पोस्ट पर आप के विचार जानने का बेसब्री से इंतज़ार है ...