गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

मेडीकल पोस्ट शेयर करने से पहले ...

सुबह से शाम हो जाती है ...वाट्सएप पर हर तरह का ज्ञान हम तक पहुंचता रहता है ...सच झूठ का कुछ पता नहीं चलता, दंगे- फसाद शुरू हो जाते हैं इन के चक्कर में .. इसी तरह से लोगों में नफ़रत फैलाने का एजेंडा लिए हुए भी लोग कुछ न कुछ पोस्ट करते रहते हैं...और कुछ का तो सारा दिन काम ही यही होता है...

मेरा तो सीधा सादा फंडा है कि जिस बात की विश्वसनीयता में मुझे संदेह लगता है ...उसे आगे कभी भी शेयर नहीं करता ..तरह तरह के इलाज के विज्ञापन, दवाईयों के विज्ञान, चमत्कारी इलाज ...पता नहीं क्या क्या दिखता रहता है ...

किसी भी बात को अगर हम आगे शेयर करते हैं तो उस पर एक तरह से हमारी स्वीकृति का भी ठप्पा लग जाता है ....
मेरे पास तो रोज़ाना ऐसी बहुत सी पोस्टें आती हैं....लेकिन मैं आगे शेयर करना तो दूर, इसे भिजवाने वाले को इस की विश्वसनीयता जांचने का जिम्मा भी सौंप देता हूं..


आज भी अभी शाम में एक जिम्मेवार चिकित्सा कर्मी से एक वीडियो मिला कि दिल्ली के किसी अस्पताल के एक डाक्टर ने आप्रेशन से किसी की आंतड़ियों से नूडल्स निकाले हैं ..लिखा था कि ये हमारे शरीर में पचते नहीं हैं... इसलिए ये आंतड़ी में फंस गये ...

बात कुछ पच नहीं रही थी ...मैंने  उस वीडियो को डाक्टर्ज़ साथियों के ग्रुप में शेयर किया ... वहां भी आज दोपहर में थोड़ा सा माहौल गर्माया हुआ है ...होता है, कभी कभी हर ग्रुप में होता है ... मैंने एक्सपर्ट्स से रिक्वेस्ट करी कि वे बताएं कि क्या यह सच हो सकता है ... उसे ग्रुप पर शेयर किए हुए एक घंटा हो चुका है ...और एक्सपर्ट से एक जवाब मिला है ...कि यह नूडल्स तो नहीं लग रहे, ऐसा लग रहा है कि ये आंतडियों में इक्ट्ठा हो चुके कीड़ों का गुच्छा है ....यह विचार अनुभवी रेडियोलॉजिस्ट के हैं ...ज़ाहिर सी बात है उन का इस तरह के पेट के अंदरूनी मसलों के बारे में काफ़ी अनुभव होता है ..

बात यहां यह नहीं है कि नूडल्स खराब होते हैं या ठीक ... ये हम सब जानते हैं कि नूडल्स एक तरह का जंक -फूड तो है ही और दूसरे जंक-फूड की तरह इस के प्रभाव भी वैसे ही होते हैं ..लेकिन इस तरह की वीडियो सोशल मीडिया पर ठेल कर यह बताना कि नूडल्स वैसे के वैसे आंतडी़ तक पहुंच गये ...यह बात असंभव लगती है ....नूडल्सज़ ने मुंह से आंतड़ी तक का रास्ता तय भी कर लिया और उस के आकार पर कुछ असर ही नहीं पड़ा ... पेट का एसिड (ग्रेसटिक एसिड) भी उस का कुछ नहीं बिगाड़ पाया !!

वही एजेंडे वाली बात है ...क्या पता किसी अस्पताल की मशहूरी के लिए, या किसी चिकित्सक को प्रमोट करने के लिए या नूडल्स कंपनी से कोई पुराना हिसाब चुकता करने के लिए इस तरह की वीडियो वॉयरल कर दी होगी ... you see anything is possible now-a-days.

पारंपरिक मीडिया इस तरफ़ इतना ध्यान नहीं देता ...वह भी क्या करे, उसे अपनी TRP की चिंता है ...उऩ में से कुछ ने अपने सेठ के एजेंडे को भी देखना है ....इस तरह की खबरों की खबर लेने की उन्हें कहां फुर्सत है....

लेकिन इस तरह के वीडियो लोगों में बिना वजह डर फैलाते हैं ... अफवाहों को बढ़ावा देते हैं ....बेकार में यह सब देखने में लोग अपना समय नष्ट करते हैं...और क्या!

बात वही है कि ज्ञान की निरंतर वर्षा हो रही है ....लेकिन ज्यादातर मामलों में सच-झूठ का कुछ पता नहीं चलता...बस बेकार में हम हर बात के एक्सपर्ट बने फिरते हैं... चाहे हम लोग उस बात की एबीसी भी न जानते हों ...

ध्यान से रहिए.....पढ़े-लिखे होने का मतलब यह भी है कि हर ज्ञान की विज्ञान की कसौटी पर परखें ....और फिर ही उस को आगे शेयर करने के बारे में विचार करें...

चलिए, इस बात पर यहीं पर ही मिट्टी डालते हैं....बात करते हैं...पैडमैन की ....एक बेहतरीन फिल्म ....मैंने तो देख ली दो तीन दिन पहले ...आप ने देखी कि नहीं....अगर नहीं देखी तो इस वीकएंड पर देख आईए...it has a strong message!

बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

गुरबत, अनपढ़ता, बेबसी, दबंगई ...दोषी कौन?

यह जो यूपी के उन्नाव में एक बात सामने आई है कि एक झोलाछाप डाकदर लोगों को एक ही सूईं से टीके लगाता रहा..जिस की वजह से २५ लोगों को एचआईव्ही संक्रमण हो गया ... मीडिया को तो टीआरपी भी देखनी है .. अभी एक पत्रकार किसी पीड़ित से पूछ रहा था कि क्या आप को पहले से पता था कि वह एक ही सूईं से टीके लगाता है ... बेवकूफ़ी से भरा सवाल तो है ही ....उस पीड़ित ने यही कहा कि पहले से पता होता तो हम लोग जाते ही क्यों वहां...

वैसे वह झोलाछाप इन लोगों का इलाज १० रूपये में करता था ... एक टीका तो लगाता ही था और साथ में दो तीन खुराक दवाई देता था...सुबह रेडियो में भी यह खबर आ रही थी कि इतने लोग इस से संक्रमित हो गये हैं और इन को इलाज के लिए फलां फलां जगह रेफर कर दिया गया है ... ठीक है, इलाज के लिए रेफर कर दिया है और इन की बेहतरी भी इसी में ही है कि वे  लोग समय पर दवाईयां आदि जो भी इन्हें दी जाएं...इन के खून की जांच के बाद ...लेते रहें ...लेकिन क्या इस से ये दुरुस्त हो जाएंगे! बीमारी के आगे बढ़ने की रफ्तार कम हो जाएगी..बस, बाकी इंफेक्शन तो रहेगा ही!

मुझे यह समझ नही आ रही थी इस तरह की घटनाओं में हम लोग दोष किस के सिर पर मढ़ें....गुरबत, अनपढ़ता, बेबसी, दबंगई .... गुरबत, अनपढ़ता, बेबसी तो पीड़ितों की हम जानते ही हैं ...लेकिन उस झोलाछाप की दबंगई की बात करें तो वह भी मुझे देखने में कहीं से भी दबंग नज़र नहीं आया....लेकिन दोष तो है कि जिस इलाज का आप को इल्म ही नहीं है उसी में जा घुसे ...और इतनी भयंकर बीमारियां परोस दी उन लोगों को ...अभी तो उस एरिया के २०० लोगों का ही टेस्ट हुआ है ... बाकी का तो अभी होना है ...

इस तरह की घटनाएं यहां वहां और सारे देश से यदा कदा आती रहती हैं....मीडिया के लिए ये वाकया होते हैं..हम लोगों के लिए भी शायद यही कुछ ... सुनते हैं, भूल जाते हैं... लेकिन जिस तन लागे, वह तन जाने! अभी मुझे ध्यान आ रहा है कि पंजाब के एक जिले में कुछ साल पहले एक झोलाछाप नपा गया क्योंकि उस ने एेसे ही दूषित सूईं से दर्जनों लोगों को हैपेटाइटिस बी की बीमारी दे डाली थी ...

कहने का मतलब है कि जो घटनाएं मीडिया में पहुंचती हैं....उस के अलावा भी सैंकड़ों-हज़ारों ऐसी घटनाएं होती होंगी और ज़रूर होती हैं...जिन तक मीडिया पहुंच ही नहीं पाता....बहुत से कारण है कि बहुत सी घटनाओं को तो दबा ही दिया जाता है ... 
देश में हर तरफ़ झोलाछाप डाक्टर, झोलाछाप फुटपाथिया डेंटिस्ट, चलते फिरते ट्रंकी वाले कान के स्पैशलिस्ट और हर मेले पर स्टॉल सजाए हुए आप को टैटू गुदवाने वाले मिल जायेंगे... और ये सब लोग भी कमा-खा ही रहे हैं ...क्योंकि लोग इन से इलाज करवा ही रहे हैं... 

यह जो मैंने गुरबत और बेबसी वाली बात की है ....अब तो यह भी लगने लगा है कि ऐसा नहीं है कि गरीब लोग ही इन के शिकार बनते हैं या अनपढ़ लोग ही इन की बातों में आ जाते हैं....ठीक ठाक पढ़े लिखे लोग भी इन के पास जाते हैं... इन से टैटू भी गुदवाते हैं.... टीके भी लगवाते हैं.... भगंदर, फिश्चूला तक के टीके ये झोलाछाप लगा देते हैं ....कौन जानता है ये लोग रोज़ाना कितने सैंकड़े लोगों को एचआई व्ही, हेपेटाइटिस बी, सी तथा अन्य तरह के संक्रमण जिन के बारे में शायद अभी हम लोग जानते ही न हों, वे सब फैला रहे हों....कोई नहीं जानता, कोई आंकड़े नहीं है, बस ढुल-मुल रवैया है हर बंदे का ....अगर सख्ती बरती जाए तो ये झोलाछाप कहीं नज़र ही न आएं...लेकिन शायद यह कहना जितना आसान है उतना इस तरह की व्यवस्था को लागू करना इतना आसान भी नहीं है ...

अभी कुछ दिन पहले लखनऊ के एक खानदानी मर्दाना ताकत का व्यापार करने वाले एक हकीम के यहां छापा मार कर बिना लाईसेंस की दवाईयां आदि जब्त तो की हैं.....एक बात तो है ही सरकार काफी कुछ कर रही है, जागरूकता के लिए जनसंचार माध्यमों से संदेश प्रसारित करती है ... और भी बहुत कुछ ....कुछ तो जिम्मा जनता को भी तो लेना पडे़गा...हर बार वही अनपढ़ता वाली बात कह कर पल्ला नहीं छुड़ा सकते ....

स्कूटर पर बैठ कर दांतों का इलाज करवाया जा रहा है ..लखनऊ कैंट  की तस्वीर है यह 
गरीब-गुरबे ही क्यों .... अच्छे पढ़े-लिखे दिखने वाले भी इन झोलाछापों के चक्कर में आ ही जाते हैं...परसों मैंने यहां लखनऊ में पहली बार देखा कि एक युवक अपने स्कूटर पर बैठ कर एक चलते-फिरते झोलाछाप दांतों के स्पेशलिस्ट से कुछ दांत साफ़ करवा रहा था ...इस के बारे में मैं एक पोस्ट लिखूंगा अलग से ... मुझे दुख हुआ यह देख कर कि न तो यह काम करने वाले को ही और न ही करवाने वाले को ही पता है कि जो इलाज चल रहा है उस का और जो औजार इस्तेमाल हो रहे हैं इन से कितनी भयंकर बीमारियां फैलने का रिस्क है ... 

बड़ी विषम समस्याएं हैं हम लोगों की ... जागरूक करते रहते हैं ... सरकारी मीडिया भी अपना काम करता ही रहता है ...लेकिन फिर भी अगर लखनऊ जैसी जगह में यह मंजर दिखा या लखनऊ के ही साथ लगते उन्नाव में यह एचआईव्ही वाली घटना हुई ....ऐसे में जो दूर-दराज के एरिया हैं वहां पर क्या हो रहा होगा, उस की तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते शायद.... 

जनमानस को जागरूक करने की और झोलाछापों पर शिकंजा कसने की बहुत ज़रूरत है ... 

बस, एक प्रार्थना ही कर लेते हैं सब के लिए ....