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रविवार, 10 अगस्त 2014

किशोरावस्था के अहम् मुद्दे...

अभी कुछ सर्च कर रहा था तो यह पन्ना दिख गया...अमेरिकन एकेडमी ऑफ पिडिएट्रिक्स का तैयार किया हुआ.. इस की विश्वसनीयता के बारे में आप पूरी तरह से आशवस्त हो सकते हैं। बिल्कुल विश्वसनीय जानकारी है ...इस पेज पर यह बताया गया है कि किशोरावस्था में कौन से मुद्दे किशोरों को परेशान किए रहते हैं.......

मोटी आवाज़ --- लड़के जब किशोरावस्था में प्रवेश करते हैं तो उन की आवाज़ भारी भरकम हो जाती है। इस से उन्हें बड़ी परेशानी सी होती है.....एम्बेरेसमैंट महसूस करते हैं, यह इस लेख में लिखा गया है तो मैं लिख रहा हूं लेकिन मेरे को नहीं लगता कि इस देश में यह कोई मुद्दा भी है। मैंने नहीं नोटिस किया कि आवाज़ के इस बदलाव से बच्चे परेशान होते हैं, पता नहीं मेरे अनुभव में यह बात आई ऩहीं।

गीले सपने (वेट ड्रीम्ज़).....यह अकसर होता है कि बच्चा सुबह उठता है तो उस का पायजामा और चद्दर भीगे हुए हों। यह पेशाब की वजह से नहीं बल्कि गीले सपने या रात में वीर्य के स्खलन की वजह से होता है, जो रात में सोते सोते ही हो जाता है। इस का मतलब यह नहीं कि लड़के को कोई कामुक सपना आ रहा था। लेकिन ऐसा हो भी सकता है (यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है)

लड़के के बापू को अपने बेटे को इस बार के बारे में बता चाहिए, उस के साथ इस विषय पर बात करनी चाहिए और उसी इस बात के लिए पूरी तरह से आश्वस्त करें कि आप को पता है कि इस के ऊपर उस (लड़के) का कोई नियंत्रण नही है..और वह इसे रोक नहीं पायेगा। बड़े होने की प्रक्रिया का यह वेट-ड्रीम्ज़ भी एक हिस्सा ही है।

अपने आप ही शिश्न का खड़ा हो जाना (involuntary erection)-- किशोरावस्था में प्रवेश करने पर लड़कों का पिनिस बिना उसे टच किए या बिना किसी प्रकार के कामुक विचारों के.. अपने आप ही खड़ा हो जाता है..अगर ऐसा कभी किसी पब्लिक जगह पर जैसे कि स्कूल आदि में हो जाता है तो लड़के को एम्बेरेसिंग लग सकता है। अगर आप का लड़का उम्र की इस अवस्था में है तो उसे बता कर रखें कि इस तरह से पिनिस का अपने आप उस की उम्र में उठ जाना भी एक बिल्कुल सामान्य सी बात है और यह केवल इस बात का संकेत है कि उस का शरीर मैच्यओर हो रहा है। यह सभी लड़कों में इस उम्र में हो सकता है......और जैसे जैसे समय बीतेगा इन की फ्रिक्वेंसी कम हो जायेगी। जी हां, मेरे साथ भी उस उम्र के दौरान ऐसा कईं बार हुआ था।

बस इतना सा कहना ही उस किशोर के मन पर जादू सा काम करेगा, भारी भरकम बोझ उतर जाएगा उस के सिर से कि पता नहीं यह सब क्यों होता है।

स्तन बड़े होना -- इन वर्षों में कईं बार किशोरों के स्तन थोड़े बढ़ जाते हैं और वे इस के बारे में चिंतित रहने लगते हैं लेकिन इस के लिए कुछ करना नहीं होता, अपने आप ही यह सब कुछ ठीक हो जाता है। इस और पता नहीं कभी मैंने तो ध्यान दिया ही नहीं।

एक अंडकोष दूसरे से बड़ा होना......एक अंडकोष का दूसरे से बड़े होना सामान्य भी है और एक आम सी बात भी है।

आप ने देखा कि किस तरह के कुछ छोटी छोटी दिखने वाली बातें किशोरों के मन का चैन छीन लेती हैं उस समय के दौरान जब उन का पढ़ाई लिखाई में मन लगा होना चाहिए। लेकिन अफसोस अभी तक हम लोग यही निर्णय नहीं कर पा रहे कि किशोरों को सैक्स ऐजुकेशन दी जानी कि नहीं, कितनी दी जानी चाहिए........आप भी ज़रा यह सोचिए कि अगर किशोरावस्था में बच्चों को ये सब बातें बता दी जाएंगी तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा।

मुझे मेरे मित्र बार बार कहते रहते हैं कि यार तुम इंगलिश में लिखा करो.........लेकिन अकसर इंगलिश में लिखने की इच्छा इसलिए नहीं होती क्योंकि इतनी सुंदर जानकारी हर विषय पर नेट पर इंगलिश में उपलब्ध है लेकिन हिंदी पढ़ने वालों की ज़रूरत कैसे पूरी हो, उन्हें क्यों विश्वसनीय जानकारी से वंचित रखा जाए, बस यही जज्बा है जो मेरे से हिंदी में कुछ भी लिखवाता रहता है।

प्रमाण --->>   Concerns boys have about puberty   और साथ में मेरे व्यक्तिगत अनुभव का आधार. अगर अभी भी किशोरों तक यह सब जानकारी न पहुंचे तो मैं क्या कहूं ?

Generally we take for granted that our adolescent boys know all this. No, they don't know the truth explained above. They just know distorted facts dished out to them by vested interests and peer-groups. Take care--- Stay informed, stay care-free!!

बुधवार, 13 जुलाई 2011

यौन-रोग सूज़ाक की बेअसर होती दवाईयां

क्या सूज़ाक का नाम नहीं सुना? – ये जो लोग पहले सिनेमाघरों, बस अड्डों और रेलवे स्टेशनों के बाहर हर किसी को एक इश्तिहार सा थमाते दिखते थे – जिस में किसी खानदानी नीम हकीम द्वारा हर प्रकार के गुप्त-रोग का शर्तिया इलाज का झांसा दिया जाता था, उस लिस्ट में कितनी बार लिखा तो होता था – आतशक-सूज़ाक जैसे रोग भी ठीक कर दिये जाते हैं। खैर वे कैसे ठीक करते हैं, अब सारा जग जानता है, केवल मरीज़ को उलझा के रखना और उन से पैसे ऐंठना ही अगर झोलाछापों का ध्येय हो तो इन से बच के रहने के अलावा कोई क्या करे।

हां, तो इस योन रोग सूज़ाक को इंगलिश में ग्नोरिया रोग (Gonorrhoea) कहते हैं – समाचार जो कल दिखा है वह यह कि इस रोग के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवाईयां बेअसर हो रही हैं और आने वाले समय में इस का इलाज करना मुश्किल हो जायेगा--- जब दवाईयां ही काम नहीं करेंगी तो इलाज क्या होगा!!

थोड़ा सा इस रोग के बारे में – यह रोग किसी संक्रमित व्यक्ति से संभोग से फैलता है और यह केवल vaginal sex से ही नहीं बल्कि ओरल-सैक्स एवं एनल सैक्स (मुथमैथुन एवं गुदा-मैथुन) से भी फैलता है। तो इस के लक्षण क्या हैं? –इस के लक्षणों के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि लगभग 50फीसदी महिलाओं में तो इस के कोई लक्षण होते ही नहीं हैं, लेकिन 2 से 5 प्रतिशत पुरूषों में इस के कोई लक्षण नहीं होते।

इस के ऊपर भारतीयों की एक और विषम समस्या --- वे अकसर इन रोगों को छोटे मोटे समझ कर या झिझक की वजह से किसी क्वालीफाइड डाक्टर से मिल कर न तो इस का आसान सा टैस्ट ही करवाते हैं और न ही इस के लिये कुछ दिन दवाईयां लेकर इस से मुक्ति ही हासिल कर पाते हैं। नतीजतन यह रोग बढ़ता ही रहता है ... और महिलाओं में तो बांझपन तक की नौबत आ जाती है ...और भी बहुत सी परेशानियां – जैसे पैल्विक इंफेमेटरी डिसीज़(pelvic inflammatory disease), पेशाब में जलन आदि हो जाती हैं।

पुरूषों में भी इस रोग की वजह से पेशाब में जलन (पेशाब की जलन के बहुत से अन्य कारण है, केवल पेशाब की जांच से ही कारण का पता चल सकता है), अंडकोष में सूजन और गुप्तांग से डिस्चार्ज हो सकता है। लेकिन इन नीम हकीमों के चक्कर में सही इलाज से दूर ही रहा जाता है।

विश्व भर के हैल्थ विशेषज्ञों की यही राय है कि ऐसे यौन-जनित रोग जिन का इलाज नहीं करवाया जाता ये रोग एचआईव्ही संक्रमण को बढ़ावा देने में भी मदद करते हैं—क्योंकि इन की वजह से यौन अंगों पर जो छोटे मोटे घाव, फोड़े, फुंसियां होते हैं वे एचआईव्ही वॉयरस को शरीर में प्रवेश करने का एक अनुकूल वातावरण उपलब्ध करवाते हैं।

तो इस खबर पढ़ कर हरेक का यह कर्तव्य बनता है कि इस के बारे में जितनी भी हो सके जनजागरूकता बढ़ाए ताकि अगर किसी को इस तरह की कोई तकलीफ है भी तो वह उस से जल्द से जल्द निजात पा सके....फिर धीरे धीरे इस के जीवाणु इतने ढीठ (drug resistance) होने वाले हैं कि पछताना पड़ सकता है।

इस तरह के रोग अमीर देशों में बहुत हैं यह हम लोग अकसर देखते पढ़ते हैं ...बेपरवाह उन्मुकता जैसे बहुत से अन्य कारणों (जिन्हें आप जानते ही हैं) में से एक कारण यह भी है कि वहां लोग इस तरह के टैस्ट करवा लेते हैं ...लेकिन भारत में पहले तो ढंग के डाक्टर (मतलब क्वालीफाइड) के पास जाता ही नहीं और अगर वहां चला भी गया तो बहुत बात टैस्ट और दवाईयां करवाने लेने के लिये टालमटोल करता है, चलो थोड़ा दिन और देशी दवाई खा कर देख लेते हैं ...इन हालातों में वह आगे से आगे यह रोग तो संचारित करता ही है, अपना तो ऩुकसान करता ही है।
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Drug resistant STD now a global threat
स्वस्थ लोगों को बीमार करने की सनक या कुछ और

सोमवार, 9 मई 2011

गुप्त रोगों के लिये नेट पर बिकने वाली दवाईयां

बचपन में स्कूल आते जाते देखा करते थे कि दीवारों पर अजीबो-गरीब विज्ञापन लिखे रहते थे....गुप्त-रोगों का शर्तिया इलाज, गुप्त रोग जड़ से खत्म, बचपन की गल्तियों की वजह से खोई ताकत हासिल करने के लिये आज ही मिलें, और फिर कुछ अरसे बाद समाचार-पत्रों में विज्ञापन दिखने शुरू हो गये इन ताकत के बादशाहों के जो ताकत बेचने का व्यापार करते हैं।

इस में तो कोई शक नहीं कि ये सब नीम हकीम भोली भाली कम पढ़-लिखी जनता को कईं दशकों से बेवकूफ बनाए जा रहे हैं....बात केवल बेवकूफ बनाए जाने तक ही सीमित रहती तो बात थी लेकिन ये लालची इंसान जिन का मैडीकल साईंस से कुछ भी लेना देना नहीं है, ये आज के युवाओं को गुमराह किये जा रहे हैं, अपनी सेहत के बारे में बिना वजह तरह तरह के भ्रमों में उलझे युवाओं को भ्रमजाल की दलदल में धकेल रहे हैं...... और इन का धंधा दिनप्रतिदिन बढ़ता जा रहा है ...अब इन नीमहकीमों ने बड़े बड़े शहरों में होटलों के कमरे किराये पर ले रखे हैं जहां पर जाकर ये किसी निश्चित दिन मरीज़ों को देखते हैं।

यह जो कुछ भी ऊपर लिखा है, इस से आप सब पाठक भली भांति परिचित हैं, है कि नहीं ? ठीक है, आप यह सब पहले ही से जानते हैं और अकसर जब हम यह सब देखते, पढ़ते, सुनते हैं तो यही सोचते हैं कि अनपढ़ किस्म के लोग ही इन तरह के नीमहकीमों के शिकार होते होंगें.....लेकिन ऐसा नहीं है।

हर जगह की, हर दौर की अपनी अलग तरह की समस्याएं हैं..... अमेरिकी साइट है –फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (Food and Drug Administration) ..कल जब मैं उस साइट को देख रहा था तो अचानक मेरी नज़र एक आर्टिकल पर रूक गई। एफडीआई द्वारा इस लेख के द्वारा लोगों को कुछ पंद्रह तरह के ऐसे उत्पादों के बारे में चेतावनी दी गई है जो गल्त क्लेम करती हैं कि वे यौन-संक्रमित रोगों (sexually-transmitted diseases –STDs--- हिंदोस्तानी भाषा में कहें तो गुप्त रोग) से बचाव करती हैं एवं इन का इलाज करने में सक्षम हैं। इस के साथ ही एक विशेषज्ञ का साक्षात्कार भी था।

आम जनता को चेतावनी दी गई है कि ऐसी कोई भी दवाई नहीं बनी जिसे कोई व्यक्ति अपने आप ही किसी दवाई से दुकान से खरीद ले (over-the-counter pills) अथवा इंटरनेट से खरीद ले और यौन-संक्रमित से बचा रह सके और इन रोगों का इलाज भी अपने आप कर सके। ये जिन दवाईयों अथवा फूड-सप्लीमैंट्स के बारे में यह चेतावनी जारी की गई है, उन के बारे में भी यही कहा गया है कि इन दवाईयों के किसी भी दावे को एफडीआई द्वारा जांचा नहीं गया है।

यौन-संक्रमित रोग होने की हालत में किसी सुशिक्षित विशेषज्ञ से परामर्श लेना ही होगा और अकसर उस की सलाह अनुसार दवा लेने से सब कुछ ठीक ठाक हो जाता है लेकिन ये देसी ठग या इंटरनेट पर बैठे ठग बीमारी को ठीक होना तो दूर उस को और बढ़ाने से नहीं चूकते, साथ ही साथ चूंकि दवाई खाने वाले को लगता है कि वह तो अब दवाई खा ही रहा है (चाहे इलाज से इस तरह की दवाईयों को कोई लेना देना नहीं होता) इसलिये इस तरह की यौन-संक्रमित रोग उसके सैक्सुयल पार्टनर में भी फैल जाते हैं।

आज की युवा पीढ़ी पढ़ी लिखी है, सब कुछ जानती है, अपने शरीर के बारे में सचेत हैं लेकिन इंटरनेट पर बैठे ठग भी बड़े शातिर किस्म के हैं, इन्हें हर आयुवर्ग की कमज़ोरियों को अच्छे से जानते हैं ....अकसर नेट पर कुछ प्रॉप-अप विज्ञापन आते रहते हैं –दो दिन पहले ही कुछ ऐसा विज्ञापन दिखा कि आप अपने घर की प्राइवेसी से ही पर्सनल वस्तुएं जैसे की कंडोम आदि आर्डर कर सकते हैं ताकि आप को मार्कीट में जाकर कोई झिझक महसूस न हो। चलिए, यह तो एक अलग बात थी लेकिन अगर तरह तरह की बीमारियों के लिये (शायद इन में से बहुत सी काल्पनिक ही हों) स्वयं ही नेट पर दवाई खरीदने का ट्रेंड चल पड़ेगा तो इंटरनेट ठगों की तो बांछें खिल जाएंगी ........ध्यान रहे कि इन के जाल में कभी न फंसा जाए क्योंकि आज हरेक को प्राईव्हेसी चाहिए और यह बात ये इंटरनेट ठग अच्छी तरह से जानते हैं।

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शुक्रवार, 4 जून 2010

अमेरिकी टीनएजर्स का सैक्सुअल बिहेवियर- एक रिपोर्ट

अमेरिका की एक सरकारी संस्था है --सैंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल-- इस ने कल ही वहां के टीनएजर्स के सैक्सुअल बिहेवियर के बारे में एक रिपोर्ट जारी की है ---CDC Report Looks at Trends in Teen Sexual Behaviour; Attitudes toward Pregnancy.
इस रिपोर्ट के मुताबिक कुछ बातें हैं जिन्हें हिंदी चिट्ठों के पाठकों से साझा करना ज़रूरी लग रहा है। मैंने ये आंकड़े इस रिपोर्ट के आधार पर cnn.com पर छपी इस स्टोरी से लिये हैं-- Teens having sex: Numbers staying steady.
15से19 साल के युवक-युवतियों के सैक्सुअल बिवेवियर के बारे में छपी इस रिपोर्ट के अनुसार 2006 से 2008 के दो साल के आंकड़ों से यह पाया गया है कि 42 प्रतिशत से ज़्यादा अथवा 43 लाख टीनएज किशोरियां कम से कम एक बार यौन संबंध बना चुकी हैं। टीनएज लड़कों के लिये ये आंकड़ें 43 प्रतिशत के हैं या 45 लाख लड़के।
जिन लड़के-लड़कियों का सर्वे किया गया उन में से 30 प्रतिशत के दो अथवा उस के अधिक पार्टनर रहे हैं। जिन टीनएज लड़कियों ने छोटी उम्र में ही पहला सैक्सुअल अनुभव किया था, उन के पार्टनर ज़्यादा होने की संभावना रहती है। और यह भी पता चला कि जो टीनएज़र अपने मां-बाप की पहली संतान हैं और 14 वर्ष की आयु में अगर वे एक टूटे परिवार (जहां मां-बाप एक साथ नहीं रहते) में रहते हैं तो उन के सैक्सुअली एक्टिव होने की संभावना ज़्यादा होती है।
यह तो आप जानते ही हैं कि अमेरिका में टीनएज उम्र की लड़कियों के मां बनने के आंकडे़ काफी ऊपर हैं। अमेरिका के बाद अगला नंबर है युनाइटेड किंगडम का। कैनेडा में टीन-बर्थ रेट है 1000 में से 13 (13 per1000) जब कि अमेरिका में यह रेट है 43 per 1000.
इस स्टोरी में तो यह भी लिखा गया है कि उन्हें इस बात की तसल्ली तो है कि लगभग 80 प्रतिशत टीनएज लड़कियां और 90 प्रतिशत टीनएज लड़के अपने पहले सैक्सुअल अनुभव के वक्त किसी न किसी तरह का गर्भनिरोध का तरीका इस्तेमाल करते हैं। कांडोम के गर्भ निरोध के लिये सब से ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है। 95 प्रतिशत सैक्सुअली अनुभवी लड़कियों ने कम से कम एक बार इस का उपयोग किया है। इस के बाद नंबर आता है वीर्य-स्खलन से पहले ही withdraw कर लेना और उस के बाद में नंबर आता है गर्भनिरोधक गोली का।
और जो टीनएजर पूरी तरह से यौन संबंधों से किनारा किये रहते हैं उन का इस तरह के व्यवहार से दूर रहने के नैतिक अथवा धार्मिक कारण पहले नंबर पर हैं --दूसरा नंबर है गर्भ ठहर जाने का डर। इस स्टोरी में यह भी लिखा है कि ऐसा नहीं कि प्रेगनैंसी ने किसी तरह से टीनएजर्स को रोक के रखा हुआ है। इस में लिखा है कि मां बाप को तो शायद सुन कर हैरानगी होगी कि ऐसे लड़के लड़कियों (जो इस तरह के संबंधों में लिप्त होते हैं) में से लगभग एक चौथाई ने तो यह कहा कि उन्हें खुशी होगी अगर वे गर्भवती हो जाएं अथवा अपने पार्टनर को गर्भवती कर दें।
और अधिकांश टीनएजर्स -- 64 प्रतिशत लड़कों एवं 71 प्रतिशत लड़कियों ने यह माना कि अगर शादी-ब्याह के बिना बच्चा हो भी जाता है तो यह ठीक है।
और एक दुःखद बात देखिये --सर्वे में पाया गया है कि 15 से 19 उम्र की टीनएज लड़कियों में यौनजनित रोग ---क्लैमाइडिया एवं गोनोरिया रोग (Chlamydia and Gonorrhoea)...किसी भी दूसरे आयुवर्ग एवं लड़कों की तुलना में काफी ज़्यादा संख्या में हैं।
इस स्टडी के लिये लगभग 3000 टीनएज लड़के लड़कियों का इंटरव्यू लिया गया था।
आप किस सोच में पड़ गये ? ऐसा ही लगते है ना कि ज़माना वास्तव में ही बहुत आगे निकल गया है। और यहां पर कुछ समय पहले शायद एक लिव-इन रिलेशशिप पर कोई फैसला आया था तो कितना बवाल मचा था । अब क्या ठीक है क्या गलत----- यह निर्णय करना एक लेखक का काम नहीं, उस का काम है तसवीर पेश करना, सो कर दी है। वैसे जो ऊपर cnn वाली स्टोरी है उस पर टिप्पणीयां बहुत ही आई हुई हैं, हो सके तो देखियेगा। मुझे तो टाइम नहीं मिला। आज शायद पहली बार मैंने इस तरह के सरकारी आंकड़े पढ़े हैं, सुनी सुनाई बात और होती है और प्रामाणिक तौर पर जारी कोई रिपोर्ट ही विश्वसनीय होती है।
बस इस बात को इधर यहीं पर दफन करते हैं। वैसे भी ...... हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है.....।

बुधवार, 19 मई 2010

एशियाई समलैंगिकों एवं द्विलिंगियों(bisexual) में एचआईव्ही इंफैक्शन के चौका देने वाले आंकड़े

एशियाई समलैंगिकों एवं द्विलिंगियों में बैंकाक में एचआईव्ही का प्रिवेलैंस 30.8 प्रतिशत है जब कि थाईलैंड में यह दर 1.4 प्रतिशत है। यैंगॉन के यह दर 29.3 फीसदी है जब कि सारे मयंमार में यह दर 0.7 प्रतिशत है। मुंबई के समलैंगिकों एवं द्विलिंगियों में यह इस संक्रमण की दर 17 प्रतिशत है जब कि पूरे भर में एचआईव्ही के संक्रमण की दर 0.36 प्रतिशत है।

संयुक्त रा्ष्ट्र के सहयोग से हुये एक अध्ययन से इन सब बातों का पता चला है--और तो और इन समलैंगिकों एवं बाइसैक्सुयल लोगों की परेशानियां एचआईव्ही की इतनी ज़्यादा दर से तो बड़ी हैं ही, इस क्षेत्र के कुछ देशों के कड़े कानून इन प्रभावित लोगों के ज़ख्मों पर नमक घिसने का काम करते हैं।

न्यूज़-रिपोर्ट से पता चला है कि एशिया पैसिफिक क्षेत्र के 47 देशों में से 19 देशों के कानून ऐसे हैं जिन के अंतर्गत पुरूष से पुरूष के साथ यौन संबधों को एवं द्विलिंगी ( Bisexual- जो लोग पुरूष एवं स्त्री दोनों के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करते हैं) गतिविधियों के लिये सजा का प्रावधान है।

इन कड़े कानूनों की वजह से छिप कर रहते हैं-- और इन लोगों में से 90प्रतिशत को न तो कोई ढंग की सलाह ही मिल पाती है और न ही समय पर दवाईयां आदि ये प्राप्त कर पाते हैं। कानून हैं तो फिर इन का गलत इस्तेमाल भी तो यहां-वहां होता ही है। इस के परिणामस्वरूप इन के मानवअधिकारों का खंडन भी होता रहता है।

इन तक पहुचने वाली रोकथाम की गतिविधियों को झटका उस समय भी लगता है जब इन प्रभावित लोगों की सहायता करने वाले वर्कर (out-reach services) - जो काम अकसर इस तरह का रूझान ( MSM -- men who have sex with men) रखने वाले वर्कर भी करते हैं--उन वर्करों को पुलिस द्वारा पकड़ कर परेशान किया जाता है क्योंकि उन के पास से कांडोम एवं लुब्रीकैंट्स आदि मिलने से ( जो अकसर ये आगे बांटने के लिये निकलते हैं) यह समझ लिया जाता है कि वे भी इस काम में लिप्त हैं और इस तरह के सारे सामान को जब्त कर लिया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई है कि अगर इस वर्ग के लिये भी एचआईव्ही के संक्रमण से बचाव एवं उपचार के लिये कुछ प्रभावशाली करने की चाह इन एशियाई देशों में है तो इन्हें ऐसे कड़े कानूनों को खत्म करना होगा, जिन कानूनों के तहत इन लोगों के साथ भेदभाव की आग को हवा मिलती हो उन्हें भी तोड़ देना होगा, यह भी इस रिपोर्ट में कहा गया है।

विषय बहुत बड़ा है, इस के कईं वैज्ञानिक पहलू हैं, विस्तार से बात होनी चाहिये ---फिलहाल आप इस लिंक पर जा कर मैड्न्यूज़ की साइट पर इस रिपोर्ट को देख सकते हैं --- HIV among gay, bisexual men at alarming highs in Asia.

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

युवतियों के यौन-अंगों को विकृत करने का घोर निंदनीय रिवाज

मैं जब जिह्वा की, होठों की एवं नेवल-पियरसिंग के बारे में पढ़ता सुनता था तो अजीब सा लगता था क्योंकि इस तरह की बॉडी-पार्ट्स की पियरसिंग के अकसर कंप्लीकेशन्स होते ही हैं। मैंने बहुत अरसा पहले कुछ पढ़ा तो यह भी था कि कुछ आदिवासी क्षेत्रों में किस तरह से महिलायों के यौन-अंगों की वे लोग "तथाकथित सुरक्षा" करते हैं।

कल मैं विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट पर यौन-रोगों की एक फैक्ट-फाइल देख रहा था तो मुझे इस तरह की सामग्री के बारे में पढ़ कर बेहद दुःख हुआ कि दुनिया में कहीं कहीं इस तरह का घिनौना एवं अमानवीय रिवाज भी है जिस के अंतर्गत छोटी छोटी बच्चियों के यौन-अंगों को ही विकृत/बिगाड़ दिया जाता है।

Female genital Mutilation (महिलाओं के यौन-अंगों को विकृत करने से अभिप्रायः है कि महिलाओं के यौन अंगों को किसी भी मैडीकल कारण के बिना विकृत कर देना या उसे चोट पंहुचाना।



इस से बच्चियों में एवं महिलायों में तरह तरह की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जैसे कि भारी रक्त स्राव, पेशाब करते समय तकलीफ़ और बाद में शिशु के जन्म के समय में होने वाले रिस्की हालात और यहां तक कि नवजात शिशुओं की मौत। इस से तो बांझपन भी हो सकता है।

एक अनुमान के अनुसार विश्व भर में लगभग 10 करोड़ से 14 करोड़ लड़कियां एवं महिलायें बिना किसी दोष के अपने यौन अंगों के विकृत किये जाने के बुरे परिणाम भुगत रही हैं। और यह विकृत करने का घिनौना काम छोटी छोटी बच्चियों से लेकर 15 साल की उम्र तक किया जाता है। इस अमानवीय प्रथा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लड़कियों एवं महिलायों के मानव अधिकारों को उल्लंघन माना गया है।

इस काम को अंजाम कौन देता है ? -- इसे पारंपरिक सुन्नत करने वालों (traditional circumcisers) द्वारा संपन्न किया जाता है। और अब तो इसे अधिकतर हैल्थ-केयर प्रोवाइडरों (यह तो नहीं लिखा हुआ कि ये कैसी सेहत देने वाले हैं!!) द्वारा ही किया जाता है।

The practice is most common in the western, eastern and north-eastern region of africa, in some countries in Asia and the Middle East, and among certain immigrant communities in North america and Europe.

इस तरह से यौन अंगों को विकृत करने के लिये आखिर किया क्या जाता है -- इस अमानवीय रिवाज के लिये बच्चियों के य़ौन-अंगों से क्लाईटोरिस (clitoris) को आंशिक तौर पर या पूरे तौर पर निकाल ही दिया जाता है। क्लाईटोरिस फीमेल यौन-अंगों का एक बिल्कुल छोटा सा एवं अत्यंत संवेदनशील भाग होता है। कुछ केसों में योनि (vagina) के आसपास की मांस की परतें ही काट कर निकाल दी जाती हैं --- removal of the labia minora with or without the removal of the labial majora ---the labia are "the lips" that surround the vagina.

और यह घिनौनापन कुछ केसों में योनि के मुख (vaginal opening) को काट-फाड़ के और टांके वांके लगा कर छोटा करने तक पहुंच जाता है और साथ में क्लाईटोरिस को निकाल दिया जाता है या कायम रखा जाता है।
यह सब करने के क्या क्या कारण हैं -----इस सिरफिरेपन के सिरफिरे कारण तो मुझ से लिखते ही नहीं बन रहे ----अगर आप पढ़ना चाहें तो ऊपर जो मैंने लिंक दिया है वहां जाकर देख लें। यह भी कैसा रिवाज है कि किसी के स्वस्थ अंगों को बिगाड़ दिया जाये ताकि उन में काम-इच्छा की कमी रहे और वे "नाजायज़" संबंधों से बची रह सकें और अपने कौमार्य को सहेज कर रख सकें । अमानवीय !!!!

और सुनिये, यह जो योनि-द्वार को संकरा करने की बात हुई उसे संभोग से पहले एवं शिशु के जन्म के समय काट कर खुला कर दिया जाता है और बाद में फिर टांक दिया जाता है जैसे कि औरत न हो गई --- कोई मशीन हो गई। और यह काटना और टांकना कईं कईं बार होने से महिलायों में कईं तरह के और भी रिस्क बढ़ जाते हैं।

केवल अफ्रीका में ही 10 साल एवं उस से ऊपर की उम्र की लगभग 9.2 करोड़ बच्चियों में यह विकृत करने वाला काम किया जा चुका है।

निःसंदेह महिलायों से भेदभाव (कितना छोटा शब्द लगता है इस घिनौने काम के लिए) की यह कितनी बड़ी उदाहरण है।

इस के बारे में लिखते मुझे ध्यान आ रहा था कुछ महीने पहले अंग्रेज़ी के एक अखबार में प्रकाशित एक रिपोर्ट का जिस में बताया गया था कि किस तरह धनाढ्य़ वर्ग की कुछ महिलायों द्वारा vaginoplasty करवाई जा रही है, और बहुत सा पैसा खर्च कर के अपने वक्ष-स्थल को उन्नत (breast augmentation) करवाया जाता है। योनि पर उम्र के प्रभाव को खत्म करने के लिये या फिर शिशु के जन्म के बाद उसे पहले जैसी स्थिति में लाने के लिये vaginoplasty का सहारा लिया जाने लगा है।

कितना कंटरास्ट है ---एक तरफ़ पकी उम्र में vaginoplasty एवं breast augmentation की स्कीमें और दूसरी तरफ़ छोटी छोटी अबोध बच्चियों के अबोध अंगों को बिना किसी कसूर के कांट-फांट कर के बिगाड़ा जा रहा है। मुझे लग रहा है कि यह शब्द लिखना कांट-खांट कितना आसान है लेकिन जिन बच्चियों पर यह कहर ढहता होगा हम उन की मनोस्थिति की तो कल्पना भी कहां कर पाएंगे ?

मैं लगभग तीन दशकों से मैडीकल प्रोफैशन के साथ जुड़ा हूं लेकिन इस तरह की बात आज पहली बार सुनी है-----शायद आप भी पहली बार सुन रहे होंगे। क्या आप इस के बारे में ऐसा कुछ कर सकते हैं जिस से इस स्थिति में कुछ सुधार हो सके ----छोटी छोटी बच्चियां, युवतियां इस घिनौने रिवाज की शिकार होने से बच सकें। आमीन................क्यों बहुत बार दुआ भी बहुत काम करती है!!