रविवार, 12 जून 2016

माता खीर भवानी चल रहे हैं ना!


देश का विभाजन हुआ १९४७ में ..भारत और पाकिस्तान...इस के बारे में कभी कभी अखबार में आता रहता है ..डाक्यूमेंटरी भी बनी हैं..यू-ट्यूब पर भी हैं...खुशवंत सिंह की "ट्रेन टू पाकिस्तान" और भीष्म साहनी का नावल "तमस "कभी पूरा नहीं पढ़ पाया...

लोगों के विस्थापन की जितनी भी हृदय दहला देने वाली जानकारी है हमने पेरेन्ट्स से सुनीं जो वहां से जान बचा कर आए...अन्य रिश्तेदारों से मिली(first hand accounts) ...परिचितों से मिली...कुछ फिल्मों से भी मिली..लाखों लोग मौत के घाट उतार दिए गये (मुझे एग्जैक्ट आंकड़े पता नहीं हैं) लेकिन दो दिन पहले अखबार में पढ़ा कि विश्व के सब से बड़े इस पलायन/विस्थापन में ६० लाख के करीब हिंदु उधर से उजड़ कर इधर आ गये..और ७०से ७५लाख मुस्लिम यहां से पाकिस्तान में चले गये..

शायद इसीलिए छोटे मोट विस्थापन या पलायन हमें कुछ लगते ही नहीं हैं...है कि नहीं?..१९९१ मई में हमारी जॉब लगी पंजाबी बाग के पास ईएसआई मेन अस्पताल में ...वहां आते जाते पीरागढ़ी चौक के पास अचानक बहुत से लोग कुछ अस्थायी से दिखने वाले घरों में रहते दिखते थे....किसी ने बताया कि ये लोग कश्मीर से आए हैं...जैसे ही कश्मीर में आतंकवाद ने अपने पांव पसारने शुरू किए....कश्मीरों पंडितों को अपनी जान की बचा कर घाटी से पलायन करना पड़ा...

उस के बाद कभी कभी किसी चुनाव के समय या ऐसे ही कभी भी उन को जुमलेबाजी की चंद मीठी गोली बंटती देख रहे हैं....बिल्कुल वैसे ही जैसे यह शब्द खीर भवानी साल में एक बार मीडिया द्वारा कानों में डाल दिया जाता है...

माता खीर भवानी उत्सव के बारे में जानने की उत्सुकता हुई..आप भी मेले के बारे में इस वीकिपीडिया लिंक पर क्लिक कर के अधिक जानकारी पा सकते हैं...


संक्षेप में बताते चलें कि माता खीर भवानी मेला कश्मीर घाटी के धार्मिक सौहृादय का प्रतीक है ...इस मेले पर मंदिर में खीर का प्रसाद चढ़ाया जाता है ..देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले कश्मीरी पंडित इस दिन इस मंदिर में आते हैं जो का श्रीनगर से १४ मील की दूरी पर है ...जानने वाली बात यह है कि पंडित यहां पर पूजा करने आते हैं लेकिन यहां का सारा इंतज़ाम मुस्लिम समुदाय संभालता है..



आज भी टीवी में देखा कि मेले में प्रदेश की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी आईं और कहा है कि वे पंडितों के घाटी लौटने  के इंतज़ाम करेंगी ...

मुझे यह ध्यान आ रहा है कि इस तरह की विस्थापना की हम लोग शायद कल्पना भी नहीं कर सकते...सरकारी नौकर अपनी सारी उम्र चपड़ासी से अधिकारी बनने तक की एक ही शहर में बिता देना चाहते हैं..और बिताते भी हैं...दो तीन घंटे की दूरी पर स्थित किसी जगह पर तबादला रोकने के लिए जी-जां लगा देते हैं.. और इन कश्मीरी पंडितों की अचानक क्या हालत हुई होगी...यह हमारी कल्पना से परे की बात है ..


चाहे ये लोग अपने ही देश में थे...लेिकन फिर भी इस तरह से एक जगह से जड़ों समेत उखाड़ दिए जाना और फिर दूसरी किसी  गैर जगह पर जाकर उस पल्लवित-पुष्पित वृक्ष को रोपना क्या इतना आसान होता है...सैंकड़ों कारणों की वजह से जिन्हें मेरे जैसे लोग जानते ही नहीं, बस फीकी सी कल्पना कर सकते हैं...

अपनी जड़ों से हटना कष्ट तो देता ही है ...एक सरबजीत गल्ती से पाकिस्तान की तरफ़ चला गया तो उस के परिवार का संघर्ष हम सब ने देखा ..शायद पंद्रह वर्षों तक या इस से भी ज़्यादा ...मैंने उस संघर्ष को कुछ ज़्यादा ही नज़दीक से देखा क्योंकि हम लोग उस दौरान ६ वर्षों के लिए पंजाब में ही थे...हर दिन उस बहन की संघर्ष की तस्वीर ...लेकिन रिजल्ट क्या निकला... 

सुबह ही  छोटा बेटा रामचंद पाकिस्तानी को अचानक याद कर के कह रहा था कि वह फिल्म भी बहुत अच्छी थी...जी हां, अगर आपने अभी तक नहीं देखी तो देखिएगा...यू-ट्यूब पर पूरी फिल्म HD क्वालिटी की पड़ी हुई है ...इसमें भी एक छोटे बच्चे की कहानी है जो गल्ती से बार्डर क्रास कर लेता है...बेहतरीन प्रस्तुति...इस में नंदिता दास ने उस बच्चे रामचंद की मां की भूमिका निभाई है ...

चलिए, मां खीर भवानी से यह प्रार्थना करते हैं कि उस के सभी बच्चे वापिस अपने अपने घरों में लौट आएं..हालात कुछ इस तरह के खुशगवार हो जाएँ कि हर तरफ़ प्यार, अमन, भाईचारे की गंगा बहने लगे..आमीन!!